बिसवां ( सीतापुर )
अखिल भारतीय अनागत साहित्य संस्थान का नौवां दूरभाष ई कवि सम्मेलन उमेश "राही"की अध्यक्षता और कवियत्री रेनू द्विवेदी के संयोजन एवं संचालन में सम्पन्न हुआ!
कवि सम्मेलन का शुभारम्भ वंदना शुक्ला की वाणी वंदना से हुआ।
हरदोई के रणविजय सिंह सोमवंशी ने अपनी रचना प्रस्तत की,
मैं निज मां की चरण रज को सदा चंदन समझता हूं।
कभी गर सिर दुखे मेरा तो मस्तक पर रगड़ता हूं।।
जो खुद सो कर के गीले में मुझे सूखा दिया बिस्तर।
नमन उस मां के चरणों में हजारों बार करता हूं।।
इलाहाबाद की वंदना शुक्ला ने रचना पेश की,
ना कुछ खोना ना कुछ इनको पाना है,
तन पे गुदड़ी बासी रोटी खाना है,
आस नहीं सोने चांदी धन दौलत की,
कैसे भी बस अपने घर को जाना है।।
सन्तोष सिंह ने पढ़ा,
नयनो से निकला एक द्रव्य
नारी जीवन का खण्ड काव्य
रोना हंसना है साथ - साथ
स्थिति ये होती महा दिव्य
रेनू द्विवेदी ने रचना प्रस्तुत कर वाहवाही लूटी।
तुम भोले शिव शंकर मेरे,
मैं बहती गंगा की धार
मैं भी छू लूँ चरण तुम्हारे,
तुम हो जग के पालनहार!
अनागत के संस्थापक डॉ अजय प्रसून ने रचना सुनाकर सबको मन्त्र मुग्ध कर दिया।
खिड़की झरोखे द्वार मन कुरेद खुलेंगे,
सभी धर्म ग्र॔थ व्यक्त कर के खेद खुलेंगे।
भीतर की रहे बात ये भीतर उचित यही,
खटकीं जो सांकलें तो कई भेद खुलेंगे.
अध्यक्षीय काव्यपाठ उमेश "राही"ने पढ़ा,
दुनिया ने मेरी बुराईयां गिना दी, अच्छाईयां नहीं देखीं
मेरे हंसते चेहरे को देखा, दर्द की गहराइयाँ नहीं देखीं।
मेरे पथ पर कांटे बिछाये, पत्थरों को खुब फेंका ,मगर
मेरी शोहरत से जलने वालो , मेरी परेशानियां नहीं देखी.
गोष्ठी के अंत में "अनागत साहित्य संस्थान" के संस्थापक डॉ अजय प्रसून ने सभी का आभार व्यक्त किया ।