सीता नवमी पर ऑनलाइन गोष्ठी आयोजित

बिसवां, सीतापुर। माता सीता सम्पूर्ण नारी जाति का गौरव हैं। भावी पीढ़ी का आदर्श हैं।अपने सुकर्मों से अर्जित सम्मान से उन्होंने वह पद प्राप्त कर लिया है कि आज उनका नाम राम से पहले लिया जाता है। उक्त विचार सीता नवमी पर आयोजित आन  लाइन गोष्ठी में सेठ जय दयाल इंटर कालेज बिसवां के सेवा निवृत्त प्रधानाचार्य दिनेश चंद्र पाण्डेय ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की सहधर्मिणी जगत जननी, जनक तनया माता सीता का पृथ्वी पर अवतरण बैशाख शुक्ल नवमी तिथि को हुआ था। इस वर्ष उनकी जयन्ती 02 मई 2020 शनिवार को है। विश्व भर में एक सौ से अधिक रामायणें प्रकाश में हैं। उत्तर भारत में सबसे प्रचलित व प्रामाणिक राम कथा के रूप में राम चरित मानस की मान्यता है।अनेक स्थलों पर राम कथा के विविध प्रसंगों में भिन्नता भी प्राप्त होती है। भिन्न मान्यता के क्रम में माता सीता के आविर्भाव की तिथि फाल्गुन कृष्ण अष्टमी भी कही जाती है। आज बिहार के नेपाल से जुड़े पूर्वी और पश्चिमी  चम्पारण आदि  कई जिलों के साथ नेपाल के विशाल भू भाग वाला राज्य कभी विदेह या मैथिल राज्य जाना जाता था। महाराज जनक इसके परम प्रतापी राजा थे। वर्तमान में नेपाल के सीमावर्ती सीतामढ़ी से मात्र चार किलोमीटर दूर पुनौरा नामक वह स्थान है जहाँ महाराज जनक ने हल चलाया था और वहीँ  भूमि से निकले एक घट से सीता जी का जन्म हुआ था। यहीँ से उत्तर लगभग 70 किलोमीटर दूर नेपाल के धनुषा जिले में विदेह राज्य की राजधानी रहा जनकपुर नगर स्थित है, जहाँ सीता का पालन पोषण हुआ, स्वयंवर हुआ और राम से उनका विवाह हुआ। पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी, भाभी, महारानी तथा माता आदि के विविध स्वरूपों का जो आदर्श रूप उन्होंने प्रस्तुत किया वह भावी पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय हो गया।अशोक वाटिका में बन्दिनी सीता अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति हैं। बनवास पश्चात अयोध्या में भगवान राम सिंहासनारूढ़ होने के पश्चात कालान्तर में जब सीता विषयक लोक निंदा से व्यथित होते हैं और वह सीता से कुछ कह भी नहीं पाते हैं तब सीता पति की सम्पूर्ण मनोदशा व मनोव्यथा को भली भांति समझ लेती हैं। वे जानती हैं कि---
   सम्राट की भुवन में युग पत्नियां हैं, है एक राजमहिषी, महिं दूसरी है।
यों तो सप्रेम प्रति पालन योग्य दोनों, है त्याज्य राजमहिषी,महि के हितों में। पति के साथ महाराज का कर्त्तव्य पथ वे स्वयं प्रशस्त करती हैं। वे स्वयं उनसे अयोध्या त्याग करने की अनुमति प्रदान करने का निवेदन करती हैं। महाराज राम की आज्ञा से सीता को लक्ष्मण जी बाल्मीकि आश्रम के निकट छोड़ आये। कुछ समय पश्चात वहीं सीता के लव और कुश नामक  तेजस्वी और परम पराक्रमी  दो पुत्र  उत्पन्न हुए।अपने लौकिक कार्यों और कर्त्तव्यों को पूरा करने के पश्चात माता लक्ष्मी की  अवतार स्वरूपा पृथ्वी पुत्री सीता अपनी माता के अंक में पुनः समाहित हो गयीं। सीता नवमी का यह पर्व भारत वर्ष एवं नेपाल राष्ट्र में विशेष रूप से मनाया जाता है । सुहागिन महिलाएं पति की लम्बी आयु व स्वयं के अखण्ड सौभाग्य वती होने के लिए व्रत रखती हैं।कुमारी कन्यायें सुयोग्य जीवन साथी पाने की कामना से व्रत रखती हैं।
    कोरोना जैसी भीषण महामारी से लड़ाई में जिस प्रकार स्वच्छता, स्वनियंत्रण द्वारा लोगों से अपनी दूरी बनाए रखना, उचित चिकित्सा, सरकारी दिशा निर्देशों का पालन करना आदि आवश्यक हैं उसी प्रकार हमारा खानपान, पूजन, व्रत उपवास आदि हमारा मनोबल बढ़ाते हैं। हम मानसिक ऊर्जा से सम्पन्न होते हैं। उक्त आन लाइन गोष्ठी में साहित्यकार एवं कवि द्वय आनन्द खत्री व घनश्याम शर्मा, प्रो. बी० बी० एल० मिश्र, राम पाल त्रिपाठी, पत्रकार विनोद गर्ग, प्रधानाचार्य संजय कुमार श्रीवास्तव, सेवा निवृत्त अध्यापक हरिश्चंद्र गुप्ता व राम सागर शुक्ल, रवीन्द्र नाथ मिश्र, राम चन्द्र त्रिपाठी एडवोकेट ,नीरज कुमार पाण्डेय, अनुराग पाण्डेय आदि ने अपने विचार प्रेषित किये हैं।