बच्चों को माता-पिता से मिलती है थैलेसीमिया की बीमारी

सीतापुर । थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन के निर्माण की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती जिससे बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है। ऐसी स्थिति में उसे बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार थैलेसीमिया से पीड़ित अधिकांश बच्चों की पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है।  सीएमओ डॉ. आलोक वर्मा बताते हैं कि यह एक आनुवंशिक बीमारी है। यह बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है। हीमोग्लोबिन आयरन व ग्लोबिन प्रोटीन से मिलकर बनता है।  ग्लोबिन दो तरह का होता है, अल्फ़ा व बीटा ग्लोबिन। थैलेसीमिया के रोगियों में ग्लोबीन प्रोटीन  या तो बहुत कम बनता है या नहीं बनता है  जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इससे शरीर को आॅक्सीजन नहीं मिल पाती है और व्यक्ति को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। डॉ प्रवीण कुमार बताते हैं कि कोरोना संक्रमण में थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता  कमजोर होती है साथ ही उनका हार्ट व लिवर भी कमजोर होता है। ऐसे में संक्रमण की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। 
इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं। कुछ बच्चों में 5 -10 साल के मध्य दिखाई देते हैं। त्वचा, आँखें, जीभ व नाखून पीले पड़ने लगते हैं। प्लीहा और यकृत बढ़ने लगते हैं, आंतों में विषमता आ जाती है, दांतों को उगने में काफी कठिनाई आती है और बच्चे का विकास रुक जाता है। बीमारी की शुरुआत में इसके प्रमुख लक्षण कमजोरी व सांस लेने में दिक्कत होती है ।